tag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post926078104900520890..comments2023-08-22T15:29:13.395+05:30Comments on random ramblings: अपनी धरतीDr. Amar Jyotihttp://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-37847012623784322772010-03-14T16:38:57.664+05:302010-03-14T16:38:57.664+05:30ओह ये बहद ख़ूबसूरत...
एक बात कहना चाहती हूँ... मुझ...ओह ये बहद ख़ूबसूरत... <br />एक बात कहना चाहती हूँ... मुझे खुशी है कि आज इसे तसल्ली से पढ़ रही हूँ... जैसे घर लौटते ही किसी को सबसे पहले अपने पसंदीदा लोगों से मिलना अच्छा लगता है ... वैसे ही लेखन-पाठन की तरफ लौटते हुए आप की ग़ज़लें पढ़ने में एक जानी पहचानी सी ख़ुशी मिल रही है... आपका धन्यवाद इतना अच्छा लिखने के लिए ... अब आप गुस्सा करेंगे और इस कमेन्ट को गोल कर देंगे :) :)<br />"सब परिंदों के साथ उड़ता हूँ, सारी नदियों के साथ बहता हूँ" ... ये मैंने रखा लिया है अपने पास.. मेरा हुआ ये शेर...ये इतना ख़ूबसूरत लगा कि इसके बारे में कुछ और नहीं कहना चाहती!!<br />"अपनी धरती के साथ रहता हूँ, उसके सब धूप-ताप सहता हूँ"... कितना बहुआयामी शेर है ये...बहुत सुन्दर!<br />"इसमें तुम भी हो और ज़माना भी, यूँ तो मैं अपनी बात कहता हूँ "... इससे गुरुजी के लेखन की याद आ गई! वो भी तो हमेशा यूँ ही कहा करते हैं.<br />"कभी पूस सा ..." बहुत ग्राफिक सा शेर है... जाने इस 'पूस' शब्द में क्या बात है, सुनते ही प्रेमचंद्र याद आ जाते हैं... "जेठ सा" दहने की बात पे मुझे झट से यकीन हो गया दादा! :)<br />"जागता हूँ सुबह को सूरज सा" ये बहुत सुन्दर ! <br />"शाम को खँडहर सा ढहता हूँ..." ये आपने क्यों लिखा मिसरा ? ... और सूरज के साथ खँडहर... ये क्या तुलना हुई दादा! दर्द है शेर में ...सो चिंता हुई :(<br />कुला मिला के एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल. आभार!Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-64107615954995437012010-02-17T07:04:28.327+05:302010-02-17T07:04:28.327+05:30:)waah!:)waah!Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-76728440430217414912010-02-12T00:31:47.487+05:302010-02-12T00:31:47.487+05:30जब कवि अपनी बात कहता हो और वो ज़माने की बन जाती है ...जब कवि अपनी बात कहता हो और वो ज़माने की बन जाती है तो कविता सार्थक हो उठती है। आपकी रचनाओं मे यही विशेषता है कि वो आपकी कलम से निकलती है और सबके दिल मे बहने लगती है।अमिताभ श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/12224535816596336049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-88071737738779628952010-02-09T21:39:02.954+05:302010-02-09T21:39:02.954+05:30बहुत ही सुंदर रचना !!बहुत ही सुंदर रचना !!संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-30556926498709209992010-02-09T19:28:56.205+05:302010-02-09T19:28:56.205+05:30बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद्बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1115690546437308633.post-60142530294965765392010-02-09T11:29:06.424+05:302010-02-09T11:29:06.424+05:30it's a great post
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