Saturday, September 27, 2008
हौसलों की उड़ान
छोटा सा आसमान क्या कहिये !!
दर्द से कौन अजनबी है यहाँ!
दर्द की दास्तान क्या कहिये।
उनके आने का आज चरचा है।
और मेरा मकान क्या कहिये!
बेच डाले चमन के गुल-बूटे;
वाह रे बाग़बान क्या कहिये!
जिंदगी के कठिन सफर में नदीम,
हर क़दम इम्तिहान, क्या कहिये!
Wednesday, September 24, 2008
चले गाँव से
चौराहे पर खड़े हैं, शायद काम कोई मिल जाए जी।
मांगी एक सौ बीस मजूरी, सुबह सवेरे सात बजे,
सूरज चढ़ा और हम उतरे , लो सत्तर तक आए जी।
दिया फावड़ा-तसला अपने घर ले जा कर मालिक ने,
सर पर रहा सवार न जाने क्या-क्या नाच नचाये जी।
कड़ी धूप में रहे खोदते पत्थर सी मिट्टी दिन भर,
दो पल रुक कर बीड़ी पी तो कामचोर कहलाये जी।
कल क्या होगा, काम मिलेगा या कि नहीं अल्ला जाने;
जिंदा रहने की कोशिश में जीवन घटता जाए जी।
Tuesday, September 23, 2008
टूटते ही गये
निष्प्रभावी रही हर व्यथा की कथा, कौन कहता है प्रारब्ध बहरा नहीं।
जब तलक चुटकुले हम सुनाते रहे, लोग हँसते रहे, मुस्कराते रहे;
दर्द के गीत की तो प्रथम पंक्ति के अंत तक भी कोई व्यक्ति ठहरा नहीं।
हाज़िरी पाठशाला में पूरी रही, फिर भी अपनी पढ़ाई अधूरी रही;
आचरण के पहाड़े तो पूरे रटे , मीठे झूठों का सीखा ककहरा नहीं।
पतझरों से तुम्हारा ये अनुबंध है, इसलिए ही तो फूलों पे प्रतिबन्ध है;
पर हवाओं के पंखों पे उड़ जायेंगी, खुशबुओं पर तो कोई भी पहरा नहीं।
बोझ से दब के कंधे तो झुक जायेंगे, साँस फूली तो कुछ देर रुक जायेंगे,
लौट जाएँ मगर, छोड़ कर ये सफ़र, घाव कोई भी इतना तो गहरा नहीं।
थक के ऐसे न बैठो, उठो चल पड़ो, अपनी आंखों के सपनों को बुझने न दो,
यूं अकेले नहीं क़ाफिले में चलो, काफ़िलों से परे कोई सहरा नहीं।
Saturday, September 13, 2008
राह में जब
देर तक आसमान को देखा।
मैनें टूटे हुए परों को नहीं ,
अपने मन की उड़ान को देखा।
वो मेरे घर कभी नहीं आया,
जिसने मेरे मकान को देखा।
जल गया रोम और नीरो ने
सिर्फ़ मुरली की तान को देखा।
तीर कातिल था; ये तो जाहिर है,
क्या किसी ने कमान को देखा?
टूटते सपनों की
टूटते सपनों की ताबीर से बातें करिये;
ज़िन्दगी भर उसी तसवीर से बातें करिये।
कैसा सन्नाटा है ज़िन्दान की तनहाई में,
तौक़ से, पाँव की ज़न्जीर से बातें करिये।
सर उठाने लगे हिटलर के नवासों के गिरोह,
अब कलम से नहीं, शमशीर से बातें करिये।
दिल के बहलाने को तिनकों से उलझते रहिये,
बात करनी है तो शहतीर से बातें करिये।
पाँव के छाले मुक़द्दर को सदा देते हैं;
हौसला कहता है तदबीर से बातें करिये।
Sunday, September 7, 2008
बदली के छाने से
बदली के छाने से, मोरों के गाने से;
दहशत सी होती है, सावन के आने से।
गोबर भी बीनें तो सूखा कब मिलता है,
आँखें ही जलती हैं चूल्हा सुलगाने से।
खेतों में काम नहीं, घर में भी दाम नहीं,
शायद कुछ बात बने,शहर भाग जाने से।
सारे फुटपाथों पर पानी भर जाता है;
रात भर भटकते हैं बिस्तर छिन जाने से।
गावों से, शहरों से, घर से फ़ुटपाथों से,
हम तो निष्कासित हैं हर किसी ठिकाने से।
Thursday, September 4, 2008
किसे फ़ुरसत
ज़रा फ़ुटपाथ पर सोए हज़ारों को गिना जाये।
महकते गेसुओं के पेच-ओ-ख़म गिनने से क्या होगा;
सड़क पर घूमते बेरोज़गारो को गिना जाये।
वो मज़हब हो, के सूबा हो, बहाना नफ़रतों का है;
वतन में दिन-ब-दिन उठती दिवारों को गिना जाये।
हमें मालूम है ‘बिलियॉनियर` हैं मुल्क में कितने;
चलो अब भूखे-प्यासे कामगारों को गिना जाये।
कोई कहता है ‘गाँधी का वतन’ तो जी में आता है,
कि गाँधी की अहिंसा के शिकारों को गिना जाये।
Wednesday, September 3, 2008
रात भर
कुछ पुराने ख़्वाब अक्सर याद आते हैं हमें.
नाख़ुदा बैठे हैं सब कश्ती का लंगर डाल कर,
और तूफ़ानों की बातों से डराते हैं हमें.
दाल-रोटी के सवालों का नहीं देते जवाब,
आक़बत की याद जो हर पल दिलाते हैं हमें.
डोरियाँ बारीक हैं इतनी कि दिखतीं भी नहीं;
और कठपुतलों के कठपुतले नचाते हैं हमें.
वक़्त देगा इस हिमाक़त का जवाब इनको नदीम;
राह के पत्थर भी अब चलना सिखाते हैं हमें.
Monday, September 1, 2008
हमारी शक्ल
हमारी शक्ल भी टी.वी पे आ जाती तो अच्छा था.
इधर भी बाढ़ इक चक्कर लगा जाती तो अच्छा था.
गिराते हम भी लाखों की मदद उड़ते जहाज़ों से;
और अपनी जेब में भी कुछ समा जाती तो अच्छा था.
इधर तो मुद्दतों से बाढ़ और भूकंप गायब हैं;
यहाँ भी ये घटा कुछ दिन को छा जाती तो अच्छा था.
हमारी भी तरफ़ नज़र-ऐ-करम करती कभी कुदरत;
पकी फ़सलों पे ओले ही गिरा जाती तो अच्छा था.
बदलते वक़्त के क़दमों की ये ख़ामोश सी आहट,
तुम्हें भी वक़्त रहते ही जगा जाती तो अच्छा था.
बचपन से अलबेले
शायद तभी अकेले हो तुम.
खोखो, कंचे, और कबड्डी,
कभी सड़क पर खेले हो तुम?
इस जर्मन शेफर्ड सरीखे
पाले कई झमेले हो तुम.
टी.वी. पर फुटबाल देख कर,
मन ही मन में 'पेले' हो तुम .
रोमानी पीड़ा के शायर,
कब कितना दुख झेले हो तुम?