मज़हबी संकीर्णताओं, वर्जनाओं के बगै़र;
हम जिये सारे ख़ुदाओं, देवताओं के बगै़र।राह में पत्थर भी थे, कांटे भी थे, पर तेरे साथ,
कट गया अपना सफ़र भी कहकशाओं के बग़ैर।
मुफ़लिसी में खुल गया हर एक रिश्ते का भरम
उम्र काटी है बुज़ुर्गों की दुआओं के बग़ैर।
कुछ तो अपना हौसला था, और कुछ मजबूरियां;
पार कर आए समन्दर नाख़ुदाओं के बग़ैर।
मत भरोसा बादबानी क़श्तियों का कर नदीम;
ये कहीं ले जा न पाएंगी हवाओं के बग़ैर।