कोई भी पर्दा, कोई राज़-ओ-राज़दार नहीं;
हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।
हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।
तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।
हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।
कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।
Friday, February 27, 2009
Friday, February 20, 2009
सिर्फ़ उम्मीद थी
सिर्फ़ उम्मीद थी; बहाना था;
तुम न आये, तुम्हें न आना था।
दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था
दीन-ओ-दुनिया से फिर कहां निभती!
दिल को तेरे क़रीब आना था।
एक तूफ़ान आ गया; वरना
ये सफ़ीना भी डूब जाना था।
लौट आए दर-ऐ-बहिश्त से हम;
वां तो सजदे में सर झुकाना था।
खो गया तेज़-रौ ज़माने में;
प्यार का फ़लसफ़ा पुराना था।
ये जो इक ढेर राख का है नदीम-
कल तलक अपना आशियाना था।
तुम न आये, तुम्हें न आना था।
दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था
दीन-ओ-दुनिया से फिर कहां निभती!
दिल को तेरे क़रीब आना था।
एक तूफ़ान आ गया; वरना
ये सफ़ीना भी डूब जाना था।
लौट आए दर-ऐ-बहिश्त से हम;
वां तो सजदे में सर झुकाना था।
खो गया तेज़-रौ ज़माने में;
प्यार का फ़लसफ़ा पुराना था।
ये जो इक ढेर राख का है नदीम-
कल तलक अपना आशियाना था।
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