सूखी अमराइयों में क्या जायें!
टूटी शहनाइयों में क्या जायें!!
उन अंधेरों में कुछ नहीं मिलता,
मन की गहराइयों में क्या जायें!
काट दें ज़िन्दगी की हलचल से,
ऐसी तनहाइयों में क्या जाएँ!
भेस शोहरत का रख के मिलती हैं,
ऐसी रुसवाइयों में क्या जाएं!
अपनी आदत है लू के झोंकों की,
तेरी पुरवाइयों में क्या जायें!
जो अन्धेरों में साथ रह न सकें,
ऎसी परछाइयों में क्या जाएं!
हम ग़म-ऐ-रोज़गार के मारे,
उनकी अंगड़ाइयों में क्या जाएं!
टूटी शहनाइयों में क्या जायें!!
उन अंधेरों में कुछ नहीं मिलता,
मन की गहराइयों में क्या जायें!
काट दें ज़िन्दगी की हलचल से,
ऐसी तनहाइयों में क्या जाएँ!
भेस शोहरत का रख के मिलती हैं,
ऐसी रुसवाइयों में क्या जाएं!
अपनी आदत है लू के झोंकों की,
तेरी पुरवाइयों में क्या जायें!
जो अन्धेरों में साथ रह न सकें,
ऎसी परछाइयों में क्या जाएं!
हम ग़म-ऐ-रोज़गार के मारे,
उनकी अंगड़ाइयों में क्या जाएं!