Thursday, March 26, 2009

सूखी अमराइयों में

सूखी अमराइयों में क्या जायें!
टूटी शहनाइयों में क्या जायें!!

उन अंधेरों में कुछ नहीं मिलता,
मन की गहराइयों में क्या जायें!

काट दें ज़िन्दगी की हलचल से,
ऐसी तनहाइयों में क्या जाएँ!

भेस शोहरत का रख के मिलती हैं,
ऐसी रुसवाइयों में क्या जाएं!

अपनी आदत है लू के झोंकों की,
तेरी पुरवाइयों में क्या जायें!

जो अन्धेरों में साथ रह न सकें,
ऎसी परछाइयों में क्या जाएं!

हम ग़म-ऐ-रोज़गार के मारे,
उनकी अंगड़ाइयों में क्या जाएं!

Monday, March 23, 2009

दुख के दिन

दुख के दिन चैन से गुज़ारे हैं;
हम तो अपने सुखों से हारे हैं

बांध लेते हैं कश्तियाँ अक्सर;
असली दुश्मन तो ये किनारे हैं


कहकशाओं से कुछ दिये लेकर
हमने मिट्टी के घर संवारे हैं।

अपनी पूंजी हैं बस वही दो पल,
जो तेरे साथ में गुज़ारे हैं

मेरे पंखों के टूटने पे जा;
मेरे सपनों में चाँद-तारे हैं


Saturday, March 7, 2009

ऊब गया है

ऊब गया है बैठे ठाले;
चल थोड़ा सा नीर बहा ले

शर्ट पहन चे गुएवरा की;
उसका सपना राम हवाले.

जब भी सुख से मन उकताए,
गीत सर्वहारा के गा ले।

कमरे में सी के ऊपर,
लेनिन की तस्वीर सजा  ले

परिवर्तन होगा, तब होगा;
इस सिस्टम में जगह बना ले