सच्चाई का दम भरता है;
कोई दीवाना लगता है।
कन्धों पर है बोझ आज का,
आँखों में कल का सपना है।
घनी अमावस की स्याही को,
जुगनू शर्मिंदा करता है।
दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
ये दुनिया कैसी दुनिया है?
आसमान को तकने वाले!
आसमान में क्या रक्खा है?
Saturday, April 4, 2009
मौत ज़िन्दगी पर
मौत ज़िन्दगी पर भारी है;
पर क्या करिये लाचारी है।
छीन-झपट कर,लूट- कपट कर,
बचे रहे तो हुशियारी है।
भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।
परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बगा़वत सरकारी है।
सुख को कुतर गए हैं चूहे;
जीवन टूटी अलमारी है।
पर क्या करिये लाचारी है।
छीन-झपट कर,लूट- कपट कर,
बचे रहे तो हुशियारी है।
भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।
परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बगा़वत सरकारी है।
सुख को कुतर गए हैं चूहे;
जीवन टूटी अलमारी है।
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