ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
हर घड़ी कुछ नया-नया सा है
दिल ठहरने की सोचता भी नहीं
पाँव ही कुछ थका-थका सा है
मुन्तज़िर है किसी के दामन का
एक आंसू रुका-रुका सा है
जब से बादाकशी से तौबा की
अपना साक़ी ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है
कुछ सयानों की देख कर फितरत
एक बच्चा डरा-डरा सा है