कितने दिन दुस्वप्न सरीखे लौट-लौट कर आओगे
ओ अभिशप्त अतीत भला कब वर्तमान से जाओगे
तिरस्कार और उपहासों से हमको तो चुप कर दोगे
पर अपने मन की सोचो उसको कैसे बहलाओगे
पर अपने मन की सोचो उसको कैसे बहलाओगे
पार उतर कर तुमने अपनी नाव जला तो डाली है
कभी लौटना पड़ा अगर तो सोचो कैसे आओगे
बूढ़ी आँखें रास्ता तकते-तकते पथरा जायेंगी
तुम भी लौटेगे ज़रूर पर उस दिन इन्हें न पाओगे
इन शरीफ़ लोगों की बस्ती से नदीम प्रस्थान करो
यहां अगर ठहरे तो तुम भी इन जैसे हो जाओगे