शटअप ब्रेख्त!
चुन ली है उन्होंने
अपनी जनता.
वही तो है जो गरज रही है
सडकों, गलियों, मोहल्लों, शहरों और देहातों में
किसी सुनामी की तरह.
और सुनामी के लिये
कुछ भी अलंघ्य नहीं होता-
न किसी का घर, न मोहल्ला, न रसोई, न शयनकक्ष.
सब कुछ बहा ले जाना है उसे.
और पीछे रह जाने हैं-
सड़े-गले बदबूदार शव, खण्डहर इमारतें,
भूख, प्यास, और महामारी.
और इन सबके बीच
इधर उधर बिखरे मुनाफ़े और ऐयाशी के कुछ द्वीप.
पर वे भी कब तक टिकेंगे
उस महाप्रलय के बाद?
उपाय एक ही है
कि जो चन्द साँसें, जो चन्द लम्हे अभी भी बचे हैं
उन्हें समेट कर
खड़ी करो वह अलंघ्य दीवार
जिससे टकरा कर
टूट-बिखर जायें
सुनामी की बर्बर लहरें.
चुन ली है उन्होंने
अपनी जनता.
वही तो है जो गरज रही है
सडकों, गलियों, मोहल्लों, शहरों और देहातों में
किसी सुनामी की तरह.
और सुनामी के लिये
कुछ भी अलंघ्य नहीं होता-
न किसी का घर, न मोहल्ला, न रसोई, न शयनकक्ष.
सब कुछ बहा ले जाना है उसे.
और पीछे रह जाने हैं-
सड़े-गले बदबूदार शव, खण्डहर इमारतें,
भूख, प्यास, और महामारी.
और इन सबके बीच
इधर उधर बिखरे मुनाफ़े और ऐयाशी के कुछ द्वीप.
पर वे भी कब तक टिकेंगे
उस महाप्रलय के बाद?
उपाय एक ही है
कि जो चन्द साँसें, जो चन्द लम्हे अभी भी बचे हैं
उन्हें समेट कर
खड़ी करो वह अलंघ्य दीवार
जिससे टकरा कर
टूट-बिखर जायें
सुनामी की बर्बर लहरें.