लम्बी-चौड़ी ताने मत
हमें बावला जाने मत
हमें आज की बात बता
किस्से सुना पुराने मत
रोटी का जुगाड़ बतला
वेद-कुरान बखाने मत
चाकर ही तो है उनका
ख़ुद को मालिक माने मत
तू भी तो हम जैसा है
आज भले पहचाने मत
अपनी धरती के साथ रहता हूं
उसके सब धूप-ताप सहता हूं
और कभी जेठ जैसा दहता हूं
सब परिन्दों के साथ उड़ता हूं
सारी नदियों के साथ बहता हूं
जागता हूं सुबह को सूरज सा
शाम को खण्डहर सा ढहता हूं
इसमें तुम भी हो और ज़माना भी
यूं तो मैं अपनी बात कहता हूं