दादा...बहुत दिनों में घर लौटी हूँ... और देखती क्या हूँ कि आप "Direct Speech" में लिख रहे है :) एकदम साफ़ साफ़... जैसे कोई protagonist अपने antagonist की मोटी बुद्धि देख के इशारों में बात कहना छोड़ के साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में बात करने लग जाए...:) बेहद सशक्त! तेज़-धार, चुभती हुई ग़ज़ल... थोड़ा तो रहम किया कीजिए :) अब इतने दिन हो गए हैं...तो आपका हस्ताक्षर शेर चुनने में कतरा रही हूँ ...पर फ़िर भी ..."रोटी का जुगाड़ बतला, वेद -पुरान बखाने मत" को चुन रही हूँ. ये कहीं भी सुनती आपकी और दुष्यंत जी की याद आती इससे! इसमें एक रोष के साथ ...एक चिंता भी है ... जो इसे कीमती बनाती है मेरे लिए... आप छोटी बहर के चैम्प हैं दादा!" सादर...शार्दुला
वाह वाह भाई जी !!
ReplyDeleteआइना दिखा दिया दिग्गजों को ! इन पांच लाइनों में पांच पेज का सन्देश छिपा है !!
बहुत बढ़िया!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर जी
ReplyDeleteवाह !! वाह !!
ReplyDeleteतू भी तो हम जैसा है
ReplyDeleteआज भले पहचाने मत
Maza aa gaya...holi mubarak ho!
हमें आज की बात बता
ReplyDeleteकिस्से सुना पुराने मत
सादर नमन
दादा...बहुत दिनों में घर लौटी हूँ... और देखती क्या हूँ कि आप "Direct Speech" में लिख रहे है :) एकदम साफ़ साफ़... जैसे कोई protagonist अपने antagonist की मोटी बुद्धि देख के इशारों में बात कहना छोड़ के साफ़-साफ़ लफ़्ज़ों में बात करने लग जाए...:)
ReplyDeleteबेहद सशक्त! तेज़-धार, चुभती हुई ग़ज़ल...
थोड़ा तो रहम किया कीजिए :)
अब इतने दिन हो गए हैं...तो आपका हस्ताक्षर शेर चुनने में कतरा रही हूँ ...पर फ़िर भी ..."रोटी का जुगाड़ बतला, वेद -पुरान बखाने मत" को चुन रही हूँ. ये कहीं भी सुनती आपकी और दुष्यंत जी की याद आती इससे! इसमें एक रोष के साथ ...एक चिंता भी है ... जो इसे कीमती बनाती है मेरे लिए...
आप छोटी बहर के चैम्प हैं दादा!"
सादर...शार्दुला
तू भी तो हम जैसा है
ReplyDeleteआज भले पहचाने मत
-बहुत शानदार!