Sunday, April 18, 2010

बंजरों में बहार

बंजरों  में  बहार  कैसे  हो
ऐसे मौसम में प्यार कैसे हो

ज़िन्दगी  जेठ  का  महीना  है
इसमें रिमझिम फुहार कैसे हो

कोई वादा कोई उमीद तो हो
बेसबब  इन्तज़ार  कैसे  हो

आप बोलें तो फूल झरते हैं
आपका  ऐतबार  कैसे  हो

जिनका सब कुछ इसी किनारे है 
ये  नदी  उनसे  पार  कैसे  हो। 

12 comments:

  1. wakay me sahi he janab

    bahut khub

    jab aap ki gazal itni achi ho to aap ko badhai diye bina kese agle blog par jaya ja sakta he


    shekhar kumawat
    http://kavyawani.blogspot.com/\

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  2. बहुत खूबसूरत गज़ल
    बेहतरीन

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  3. बेहद खुब सुरत रचना जी. धन्यवाद

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  4. आप बोलें तो फूल झरते हैं
    आपका ऐतबार कैसे हो !

    क्या बात कही है भाई जी आज के समय में मीठे बोलों का तो कोई यकीन ही नहीं है !शुभकामनायें !

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  5. आप बोलें तो फूल झरते हैं
    .....
    बहुत अच्छा लगा
    और ये भी
    जिनका सब कुछ इसई किनारे हो
    ....
    बधाई

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  6. उम्दा कहन

    मजा आया पढ़ कर

    शुक्रिया

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  7. ज़िन्दगी जेठ का महीना है

    बहुत सुन्दर प्रयोग है हुज़ूर. दाद कबूलें.

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  8. जानते हैं दादा, "जिनका सब कुछ इसी किनारे पे, ये नदी उनसे पार कैसे हो"... ये शेर पढ़ा था आपका और इतना वज़नदार लगा था, कि लगा झट से "अच्छा है, उम्दा" लिख देने से काम नहीं चलेगा... इसलिए इतने दिनों तक रुकी रही टिप्पणी करने से... इस शेर में बहुत गहराई है, ऊँचाई है ... बहुत व्यापक अर्थों वाली बात... मन में पैठ गया है और "जीवन टूटी अलमारी है"...वाले शेर के बगल में जा के बैठ गया है. आभार स्वीकारें!
    "आप बोलें तो फूल..." ये गलत बात है :) आप हमेशा मीठा बोलने वालों पे व्यंग क्यों करते हैं ... वेरी बैड :) !! एक बात कहिये , जो लोग हमेशा क्रान्ति की बात करते हैं, या हमेशा रोनी-रोनी बातें करते हैं...उनका एतबार कर सकते हैं क्या आप... मेरे हिसाब से तो हमेशा एक सी बात करने वालों का एतबार करना मुश्किल ही है --चाहे फूल झरें या शोले!
    "इंतज़ार " वाले शेर से आपका ही एक शेर याद आ गया... तुम न आए, तुम्हें न आना था!
    "ज़िंदगी जेठ का महीना है ... " शायद आपका आशय ऐसा न हो... पर फ़िर भी जानते हैं दादा, दूसरे मिसरे से जाने क्यों आस सी बंधी और सौंधी सुंगंध आयी... बारिश तो हो के रहेगी!
    और माफ़ करें भईया ...क्योंकि मतले से भी मुझे यूँ ही लगा कि बंजारों में बहार आ के ही रहेगी और प्यार हो के ही रहेगा...चाहे मौसम का आदेश हो न हो... सो मेरे लिए पूरी तरह से सकारात्मक ग़ज़ल with a dash of wonderful philosophy in the end!
    So Gos bless you and keep writing :)
    shardula

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  9. बहुत खूबसूरत गज़ल
    बेहतरीन

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