उनकी महफ़िल है फ़क़त हंसने हंसाने के लिये
कौन जाये दर्द की गाथा सुनाने के लिये
जेब में मुस्कान रख कर घूमता है आदमी
जब जहां जैसी ज़रूरत हो दिखाने के लिये
ले गये कमज़र्फ हंस हंस कर वफ़ाओं की सनद
हम सरीखे ही बचे हैं आज़माने के लिये
गाँव में क्या था कि रुकते खेत घर सब बिक चुके
अब भटकते हैं शहर में आब-ओ-दाने के लिये
आज फिर राजा को नंगा कह गया सरकश कोई
फिर से हैं तैयारियां मकतल सजाने के लिये