माना मद्धम है थरथराती है
फिर भी इक लौ तो झिलमिलाती है
मैं अकेला कभी नहीं गाता
वो मेरे साथ गुनगुनाती है
हां ! ये सच है के कुछ दरख़्त कटे
एक बुलबुल तो फिर भी गाती है
मैं अकेला कहां ! मेरे मन में
एक तस्वीर मुस्कराती है
आंख कितनी ही मूंद ले कोई
ज़िंदगी आइना दिखाती है
फिर भी इक लौ तो झिलमिलाती है
मैं अकेला कभी नहीं गाता
वो मेरे साथ गुनगुनाती है
हां ! ये सच है के कुछ दरख़्त कटे
एक बुलबुल तो फिर भी गाती है
मैं अकेला कहां ! मेरे मन में
एक तस्वीर मुस्कराती है
आंख कितनी ही मूंद ले कोई
ज़िंदगी आइना दिखाती है
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