मन में अकुलाते मगर प्रश्न पुराने से रहे
द्वारिका जा के ही मिल आओ अगर मिलना है
अब किशन लौट के गोकुल में तो आने से रहे
बावरा बैजू भी शामिल हुआ नौरतनों में
और फिर सारी उम्र होश ठिकाने से रहे
प्यासे खेतों की पुकारों में असर हो शायद
मानसूनों को समंदर तो बुलाने से रहे
सूखी नदियों पे बनाए हैं सभी पुल तुमने
अगले सैलाब में ये काम तो आने से रहे
प्यासे खेतों की पुकारों में असर हो शायद
मानसूनों को समंदर तो बुलाने से रहे
सूखी नदियों पे बनाए हैं सभी पुल तुमने
अगले सैलाब में ये काम तो आने से रहे
वाह! क्या बात है.
ReplyDeleteअमर दादा!
ReplyDeleteनीचे वाले तीनों शेर में जो सन्देश है, क्या कहूँ, बस आपके बस की ही बात है.
बावरा बैजू .... वाला तो उफ्फ कितना कितना अच्छा है! मन में एक दर्द सा उठता है उसे पढ़ के... इतना कठोर सच!
सूखी नदियों पे ... वाला भी बहुत से सन्दर्भों में, बहुत से परिपेक्षों में ढलने लायक... याद रखने लायक शेर...शब्द नहीं तो भाव ही सही...पर ज़हन में रहेगा अब से.
मन प्रसन्न हुआ :)
आपका आभार!
hamesha ki tarah khubsurat shabdo kaa jaal aap ne buna haen
ReplyDeleteAmar Jyoti ji
ReplyDeleteAaj pahali baar apke blog par aayaa hoon. Aapki ghazal padkar anand aa gaya kya khoob ghazal kahi hai apne khaskar ye sher
sookhi nadiyon pe banaye hain sabhi pul tumane
agale sailaab men ye kaam to aane se rahe.
bahut sunder. Badhai.
amar saheb,
ReplyDeletekm likhte hein aur achha likhte hein .is liye in ke hindi ke hisab se likhe shair asar chhod jate hein.
surender bhutani
warsaw (Poland)