आंख के आकाश पर बदली तो छाई है ज़रूर
हो न हो कल फिर किसी की याद आई है ज़रूर
उड़ चला जिस पल परिंदा कुछ न बोली चुप रही
डाल बूढ़े नीम की पर थरथराई है ज़रूर
मयकशों ने तो संभल कर ही रखे अपने क़दम
वाइज़ों की चाल अक्सर डगमगाई है ज़रूर
लोग मीलों दूर जा कर फूंक आये बस्तियां
आंच पर थोड़ी तो उनके घर भी आई है ज़रूर
हिटलर-ओ-चंगेज़ के भी दौर आये पर नदीम
ज़िन्दगी उनसे उबर कर मुस्कराई है ज़रूर
हो न हो कल फिर किसी की याद आई है ज़रूर
उड़ चला जिस पल परिंदा कुछ न बोली चुप रही
डाल बूढ़े नीम की पर थरथराई है ज़रूर
मयकशों ने तो संभल कर ही रखे अपने क़दम
वाइज़ों की चाल अक्सर डगमगाई है ज़रूर
लोग मीलों दूर जा कर फूंक आये बस्तियां
आंच पर थोड़ी तो उनके घर भी आई है ज़रूर
हिटलर-ओ-चंगेज़ के भी दौर आये पर नदीम
ज़िन्दगी उनसे उबर कर मुस्कराई है ज़रूर
बेहद खूबसूरत शेर
ReplyDeleteदा, उड़ चल जिस पल परिंदा.... बेहद नाज़ुक और खूबसूरत...
ReplyDeleteमहफूज़ रहे !
उड़ चला जिस पल परिंदा, कुछ ना बोली चुप रही
ReplyDeleteडाल बूढ़े नीम की , पर थरथराई है ज़रूर !
वाह ....
दर्द की गहन अभिव्यक्ति केवल दो पंक्तियों में !
आभार आपका !
" आंख के आकाश पर बदली तो छाई है जरूर
ReplyDeleteहो न हो कल किसी की याद आई है जरूर "
कुशलतापूर्वक खूबसूरत अभिव्यक्ति..!