मुद्दतों पहले जहां छोड़ लड़कपन आए
बारहा याद वे दालान, वे आँगन आये ।
रास्ते में किसी बरगद का तो साया न मिला;
हाँ! मगर इसमें बबूलों के कई वन आये ।
घर नगर छोड़ के जिस रोज़ से वनवास लिया
हमसे मिलने कई तुलसी, कई रावन आये ।
रहे गुमनाम हर इक गांव नगर बस्ती में
जैसे नाबीना शहर में कोई दरपन आये ।
कट गई उम्र यूं ही आँख मिचौनी में नदीम
दुःख के बैसाख कभी दर्द के सावन आये ।
बारहा याद वे दालान, वे आँगन आये ।
रास्ते में किसी बरगद का तो साया न मिला;
हाँ! मगर इसमें बबूलों के कई वन आये ।
घर नगर छोड़ के जिस रोज़ से वनवास लिया
हमसे मिलने कई तुलसी, कई रावन आये ।
रहे गुमनाम हर इक गांव नगर बस्ती में
जैसे नाबीना शहर में कोई दरपन आये ।
कट गई उम्र यूं ही आँख मिचौनी में नदीम
दुःख के बैसाख कभी दर्द के सावन आये ।
"रास्ते में किसी बरगद का तो साया न मिला;
ReplyDeleteहाँ! मगर इसमें बबूलों के कई वन आए।"
समाज की सच्चाई, आपकी हर रचना की जान है ! बधाई !