आंख के आकाश पर बदली तो छाई है ज़रूर
हो न हो कल फिर किसी की याद आई है ज़रूर
उड़ चला जिस पल परिंदा कुछ न बोली चुप रही
डाल बूढ़े नीम की पर थरथराई है ज़रूर
मयकशों ने तो संभल कर ही रखे अपने क़दम
वाइज़ों की चाल अक्सर डगमगाई है ज़रूर
लोग मीलों दूर जा कर फूंक आये बस्तियां
आंच पर थोड़ी तो उनके घर भी आई है ज़रूर
हिटलर-ओ-चंगेज़ के भी दौर आये पर नदीम
ज़िन्दगी उनसे उबर कर मुस्कराई है ज़रूर
हो न हो कल फिर किसी की याद आई है ज़रूर
उड़ चला जिस पल परिंदा कुछ न बोली चुप रही
डाल बूढ़े नीम की पर थरथराई है ज़रूर
मयकशों ने तो संभल कर ही रखे अपने क़दम
वाइज़ों की चाल अक्सर डगमगाई है ज़रूर
लोग मीलों दूर जा कर फूंक आये बस्तियां
आंच पर थोड़ी तो उनके घर भी आई है ज़रूर
हिटलर-ओ-चंगेज़ के भी दौर आये पर नदीम
ज़िन्दगी उनसे उबर कर मुस्कराई है ज़रूर