भोर सकारे जैसा बचपन;
ये उजियारे जैसा बचपन।
प्यासी आंखें, सूखा चेहरा,
झील किनारे जैसा बचपन।
मत्था टेके; रोटी मांगे;
ये गुरुद्वारे जैसा बचपन
काँटे पहने भटक रहा है,
ये गुब्बारे जैसा बचपन।
कचरा बीन रहा सड़कों पर
चन्दा-तारे जैसा बचपन।
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बचपन को ले कर भावुक कर देने वाले शेर लिखे हैं आपने, बधाई स्वीकारें..
ReplyDelete***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com
www.kuhukakona.blogspot.com
भोर सकारे जैसा बचपन
ReplyDeleteये उजियारे जैसा बचपन.
बधाई.
काँटे पहने भटक रहा है,
ReplyDeleteये गुब्बारे जैसा बचपन।
कचरा बीन रहा सड़कों पर
चन्दा-तारे जैसा बचपन।
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
बहुत बढिया.
ReplyDeleteकचरा बीन रहा सड़कों पर
ReplyDeleteचन्दा-तारे जैसा बचपन।
क्या बात है...बहुत बढ़िया..।।