Saturday, August 9, 2008

पसीने के

गए वो दिन कि ज़ुल्फ़ों-गेसुओं में रास्ता खोजो।
पसीने के, धुएं के,जंगलों में रास्ता खोजो;

अमावस के अँधेरों में कभी सूरज नहीं दिखता;
दियों के,जुगनुओं के हौसलों में रास्ता खोजो।

ये माना हर नदी नीले समंदर तक नहीं जाती;
मगर ये क्या!कि इन अँधे कुओं में रास्ता खोजो।

पुराने नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय है;
ख़ुद अपने बाज़ुओं की कोशिशों में रास्ता खोजो।

न कोई नक्श-ए-पा है,और न संग-ए-मील है कोई;
मुसाफ़िर गुलशनों के, ख़ुशबुओं में रास्ता खोजो।

5 comments:

  1. "पुराने नाख़ुदाओं के भरोसे डूब जाओगे;
    भँवर में जा के अपने बाज़ुओं से रास्ता पूछो।"
    वाह! वाह!

    बहुत खूब.

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  2. पुराने नाख़ुदाओं के भरोसे डूब जाओगे;
    भँवर में जा के अपने बाज़ुओं से रास्ता पूछो।
    अच्छा लिखा है हौसला हो तो ऐसा, किसी भी भंवर में उतर रहे हो तो सिर्फ अपने पर विश्वास रखो। सुंदर...अति उत्तम।।।।

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  3. पसीने की ग़ज़ल खूब बन पड़ी है
    विशेषतया यह पंक्तियाँ---
    पसीने की, धुएं की, बदबुओं से रास्ता पूछो;
    गए वो दिन कि ज़ुल्फ़ों-गेसुओं से रास्ता पूछो।
    अमावस के अँधेरों में कभी सूरज नहीं दिखता;
    मशालों से, दियों से, जुगनुओं से रास्ता पूछो।
    अच्छी रचनाएँ देने का बहुत-बहुत धन्यवाद.

    Sudha Om Dhingra
    919-678-9056 (H)
    919-801-0672(C)
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  4. पसीने की ग़ज़ल खूब बन पड़ी है
    विशेषतया यह पंक्तियाँ---
    पसीने की, धुएं की, बदबुओं से रास्ता पूछो;
    गए वो दिन कि ज़ुल्फ़ों-गेसुओं से रास्ता पूछो।
    अमावस के अँधेरों में कभी सूरज नहीं दिखता;
    मशालों से, दियों से, जुगनुओं से रास्ता पूछो।
    अच्छी रचनाएँ देने का बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  5. जबरदस्त!! बेहतरीन! वाह!!!

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