Wednesday, August 6, 2008

कह गया था

कह गया था, मगर नहीं आया;
वो कभी लौट कर नहीं आया।

क़ाफिले में तमाम लोग थे पर,
बस वही हमसफ़र नहीं आया।

रेल तो टर्मिनस पे आ  पहुंची;
किंतु मेरा शहर नहीं आया।

ऐसा क्यों लगता है कि जैसे वो,
आ तो सकता था, पर नहीं आया।

एक मेरी बिसात क्या, सुख तो
जाने कितनों के घर नहीं आया।

2 comments:

  1. एक मेरी बिसात क्या, सुख तो
    जाने कितनों के घर नहीं आया।
    कईयों को इंतजार है...
    बहुत बढि़या...संदर...अति उत्तम।।।

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  2. बहुत उम्दा, क्या बात है!

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