कह गया था, मगर नहीं आया;
वो कभी लौट कर नहीं आया।
क़ाफिले में तमाम लोग थे पर,
बस वही हमसफ़र नहीं आया।
रेल तो टर्मिनस पे आ पहुंची;
किंतु मेरा शहर नहीं आया।
ऐसा क्यों लगता है कि जैसे वो,
आ तो सकता था, पर नहीं आया।
एक मेरी बिसात क्या, सुख तो
जाने कितनों के घर नहीं आया।
वो कभी लौट कर नहीं आया।
क़ाफिले में तमाम लोग थे पर,
बस वही हमसफ़र नहीं आया।
रेल तो टर्मिनस पे आ पहुंची;
किंतु मेरा शहर नहीं आया।
ऐसा क्यों लगता है कि जैसे वो,
आ तो सकता था, पर नहीं आया।
एक मेरी बिसात क्या, सुख तो
जाने कितनों के घर नहीं आया।
एक मेरी बिसात क्या, सुख तो
ReplyDeleteजाने कितनों के घर नहीं आया।
कईयों को इंतजार है...
बहुत बढि़या...संदर...अति उत्तम।।।
बहुत उम्दा, क्या बात है!
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