रवाँ हों अश्क, लबों पर हँसी नज़र आये;
चिता की लौ में नई ज़िन्दगी नज़र आये।
धुएं से यूं न डर ए दोस्त! बहुत मुमकिन है,
धुएं के पार कोई रौशनी नज़र आये।
क़दम-क़दम पे फ़रिश्तों की भीड़ मिलती है;
कभी, कहीं तो कोई आदमी नज़र आये।
समदरों ने भला किसकी प्यास को सींचा!
उन्हें कहाँ से मेरी तश्नगी नज़र आये।
ये काला चश्मा ही परदा मेरे वजूद का है;
हटे तो सबको मेरी बेक़सी नज़र आये।
Thursday, August 14, 2008
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माननीय,
ReplyDeleteअति सुन्दर! वाह-वाह
विशेष--
क़दम-क़दम पे फ़रिश्तों की भीड़ मिलती है;
कभी, कहीं तो कोई आदमी नज़र आये।
Sudha Om Dhingra
919-678-9056 (H)
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धुएं से यूं न डर ए दोस्त! बहुत मुमकिन है,
ReplyDeleteधुएं के पार कोई रौशनी नज़र आये।
बहुत अच्छे अमर भाई !