Wednesday, January 27, 2010

बीन का

बीन का रागिनी से रिश्ता हो
साँस का ज़िन्दगी से रिश्ता हो

ऐसी बस्ती बसाइये जिसमें
सबका सबकी ख़ुशी से रिश्ता हो

अपनी गिनती है देवताओं में
किस लिये आदमी से रिश्ता हो

ये दुमहले गिरें तो अपना भी
धूप से, रौशनी से रिश्ता हो

अब तो राजा हैं द्वारिका के किशन
किस लिये बाँसुरी से रिश्ता हो

Monday, January 11, 2010

जो गया

जो गया

सो गया

 

बीज कुछ

बो गया

 

जो रहा

रो गया

 

तू कहां

खो गया

 

जो हुआ

हो गया

 

 

Wednesday, January 6, 2010

रास्ता ही

रास्ता ही भूल जाओ एक दिन

आओ मेरे घर भी आओ एक दिन

 

बासी रोटी से ज़रा आगे बढ़ो

उसको टॉफ़ी भी खिलाओ एक दिन

 

क्या मिलेगा ऐसे गुमसुम बैठ कर,

साथ मेरे गुनगुनाओ एक दिन

 

बर्फ़ सम्बन्धों की पिघलेगी ज़रूर

धूप जैसे मुस्कराओ एक दिन

 

घर के सन्नाटे में गुम हो जाओगे

दौड़ती सड़कों पे आओ एक दिन