Saturday, February 20, 2010

लम्बी-चौड़ी

लम्बी-चौड़ी ताने मत
हमें बावला  जाने मत

हमें आज की बात बता
किस्से सुना पुराने मत

रोटी का जुगाड़ बतला
वेद-कुरान बखाने  मत

चाकर ही तो है उनका
ख़ुद को मालिक माने मत

तू भी तो हम जैसा है
आज भले पहचाने मत

Tuesday, February 9, 2010

अपनी धरती

अपनी धरती के साथ रहता हूं

उसके सब धूप-ताप सहता हूं


पूस जैसा कभी ठिठुरता हूं

और कभी जेठ जैसा दहता हूं

 

सब परिन्दों के साथ उड़ता हूं

सारी नदियों के साथ बहता हूं

 

जागता हूं सुबह को सूरज सा

शाम को खण्डहर सा ढहता हूं

 

इसमें तुम भी हो और ज़माना भी

यूं तो मैं अपनी बात कहता हूं