Sunday, April 18, 2010

बंजरों में बहार

बंजरों  में  बहार  कैसे  हो
ऐसे मौसम में प्यार कैसे हो

ज़िन्दगी  जेठ  का  महीना  है
इसमें रिमझिम फुहार कैसे हो

कोई वादा कोई उमीद तो हो
बेसबब  इन्तज़ार  कैसे  हो

आप बोलें तो फूल झरते हैं
आपका  ऐतबार  कैसे  हो

जिनका सब कुछ इसी किनारे है 
ये  नदी  उनसे  पार  कैसे  हो।