Monday, October 27, 2008

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

Saturday, October 18, 2008

सिमटने की हक़ीक़त

सिमटने की हक़ीकत से बंधा विस्तार का सपना;

खुली आँखों से सब देखा किये बाज़ार का सपना।


समंदर के अँधेरों में हुईं गुम कश्तियां कितनी,

मगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।


थकूँ तो झाँकता हूं ऊधमी बच्चों की आँखों में;

वहां ज़िन्दा है अब तक ज़िन्दगी का,प्यार का सपना।


जो रोटी के झमेलों से मिली फ़ुरसत तो देखेंगे

किसी दिन हम भी ज़ुल्फ़ों का,लब-ओ-रुख़सार का सपना।


जुनूं है, जोश है, या हौसला है; क्या कहें इसको!

थके-माँदे कदम और आँख में रफ़्तार का सपना।

Friday, October 17, 2008

गिरते-गिरते

गिरते-गिरते संभल गया मौसम ;
लीजिये फिर बदल गया मौसम।

फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
हम तो समझे थे जल गया मौसम।

अब पलट कर कभी न आयेगा,
काफी आगे निकल गया मौसम।

ये हवाएं कहीं नहीं रुकतीं;
फिर भी कैसा बहल गया मौसम।

एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
और मन में मचल गया मौसम।

Wednesday, October 8, 2008

राम जी से

राम जी से लौ लगानी चाहिए;
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।

उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।

तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।

काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।

लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।

Wednesday, October 1, 2008

ख़ूब मचलने की


ख़ूब मचलने की कोशिश कर;
और उबलने की कोशिश कर।

व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
इसे बदलने की कोशिश कर।

कोई नहीं रुकेगा प्यारे;
तू ही चलने की कोशिश कर।

इंतज़ार मत कर सूरज का;
ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।

गिरने पर शर्मिन्दा मत हो;
सिर्फ़ सँभलने की कोशिश कर।

इन काँटों से डरना कैसा!
इन्हें मसलने की कोशिश कर।