गिरते-गिरते संभल गया मौसम ;
लीजिये फिर बदल गया मौसम।
फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
हम तो समझे थे जल गया मौसम।
अब पलट कर कभी न आयेगा,
काफी आगे निकल गया मौसम।
ये हवाएं कहीं नहीं रुकतीं;
फिर भी कैसा बहल गया मौसम।
एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
और मन में मचल गया मौसम।
Friday, October 17, 2008
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ये हवाएं कहीं नहीं रुकतीं;
ReplyDeleteफिर भी कैसा बहल गया मौसम।
..बढ़िया लगी यह .बहुत खूब
फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
ReplyDeleteहम तो समझे थे जल गया मौसम।
' very appreciable creation, excellent words and thoughts"
intjar ka lemha jub kabhee ktm na hua.....
ashkon mey barf ke treh pighal gya mausam
Regards
क्या बात है बहुत ही बढिया लिखा है आपने । लाजवाब
ReplyDeleteपास से गुजर कर ना बरसा बादल
ReplyDeleteहाय देखो कितना बदल गया मौसम
गिरते-गिरते संभल गया मौसम ;
ReplyDeleteलीजिये फिर बदल गया मौसम।
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एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
और मन में मचल गया मौसम।
kya khoob!
अति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत खूब कहा डॉ अमर ! हमेशा की तरह प्रभावशाली
ReplyDeleteWah..wa
ReplyDeletebadiya kaha aapne....
badhaiiiiiiiiiiiii
फिर चिता से उठा धुआं बन कर;
ReplyDeleteहम तो समझे थे जल गया मौसम।
बहुत ही गहरे भाव, अति सुन्दर कविता.
धन्यवाद
एक उड़ती हुई पतंग दिखी;
ReplyDeleteऔर मन में मचल गया मौसम।
-बहुत जबरदस्त!!