राम जी से लौ लगानी चाहिए;
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।
काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।
लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।
काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।
लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
ReplyDeleteमीडिया को तो कहानी चाहिए।
" very well said, good creation"
regards
खुब..
ReplyDeleteगजब।
ReplyDeleteउसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
लेकिन कई मामलों में मीडिया की वजह से ही इंसाफ भी मिला है।
राम जी से लॊ......
ReplyDeleteबहुत खुब
क्या तेवर हैं ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteराजनेताओं को अब तो आपकी
रोज नई गजलें पढानी चाहिए।
गुम गयी अंगूठी फिर दुष्यंत की
अब कोई दूजी निशानी चाहिए।
वह अमर भाई !
ReplyDeleteइस सादगी पै कौन न मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं मगर हाथ में शमशीर भी नहीं !
मज़ा आ गया !
अच्छा कहा है!
ReplyDeletesahi kah rahe ho bhai ...
ReplyDeleteबहुत जबरदस्त कहा ! शुभकामनाएं !
ReplyDeleteभई वाह इस बार आपकी रचना ने मोह लिया
ReplyDeleteसाधुवाद
अमरजी
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही आपने
अपनी डोली खुद उठानी चाहिये,
सादर
राकेश
राम जी से लौ लगानी चाहिए;
ReplyDeleteऔर फिर बस्ती जलानी चाहिए।
उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।
ज़िंदगी को बेबाकी से बयां करती हुई कविता