सिमटने की हक़ीकत से बंधा विस्तार का सपना;
खुली आँखों से सब देखा किये बाज़ार का सपना।
समंदर के अँधेरों में हुईं गुम कश्तियां कितनी,
मगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।
थकूँ तो झाँकता हूं ऊधमी बच्चों की आँखों में;
वहां ज़िन्दा है अब तक ज़िन्दगी का,प्यार का सपना।
जो रोटी के झमेलों से मिली फ़ुरसत तो देखेंगे
किसी दिन हम भी ज़ुल्फ़ों का,लब-ओ-रुख़सार का सपना।
जुनूं है, जोश है, या हौसला है; क्या कहें इसको!
थके-माँदे कदम और आँख में रफ़्तार का सपना।
थकूँ तो झाँकता हूं ऊधमी बच्चों की आँखों में;
ReplyDeleteवहां ज़िन्दा है अब तक ज़िन्दगी का,प्यार का सपना।
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वाह ! बहुत ही सुंदर हौसले से लरबेज ग़ज़ल है.मन उत्साहित कर देने वाली इतनी सुंदर पंक्तियों के लिए आभार.
वाह ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसिमटने की हक़ीकत साथ में विस्तार का सपना;
ReplyDeleteखुली आँखों से सब देखा किये बाज़ार का सपना।
समंदर के अँधेरों में हुईं गुम कश्तियां कितनी,
मगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।
बहुत ख़ूब...मन को छू लेने वाली पंक्तियां हैं...बधाई...
जो रोटी के झमेलों से मिली फ़ुरसत तो देखेंगे
ReplyDeleteकिसी दिन हम भी ज़ुल्फ़ों का,लब-ओ-रुख़सार का सपना।
वाह ! बहुत ही सुंदर
जुनूं है, जोश है, या हौसला है; क्या कहें इसको!
ReplyDeleteथके-माँदे कदम और आँख में रफ़्तार का सपना।
बहुत उम्दा क्या बात है!
वाह साहब. बहुत खूब. बहुत उम्दा शेर.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर हिम्मत से भरपुर एक अच्छी कविता
ReplyDeleteधन्यवाद
समंदर के अँधेरों में हुईं गुम कश्तियां कितनी,
ReplyDeleteमगर डूबा नहीं है-उस तरफ़, उस पार का सपना।
--वाह वाह!! बहुत खूब!!
amar rachnasheelta shayad ise hi kahte hain.
ReplyDeleteaapke mizaaj kaash sab ke ho jayen!
ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अपनी राय भी दें.
पढ़कर आनंद आया जनाब। अच्छी रचना।
ReplyDeleteदीपावली पर आप को और आप के परिवार के लिए
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएँ!
धन्यवाद
बहुत बढ़िया भाई जी !
ReplyDeleteशुभकामनायें !