Friday, February 27, 2009

कोई भी पर्दा

कोई भी पर्दा, कोई राज़-ओ-राज़दार नहीं;
हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।

हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।

तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।

हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।

कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।

Friday, February 20, 2009

सिर्फ़ उम्मीद थी

सिर्फ़ उम्मीद थी; बहाना था;
तुम न आये, तुम्हें न आना था।

दिल में तनहाइयों का सन्नाटा,
और चारो तरफ़ ज़माना था

दीन-ओ-दुनिया से फिर कहां निभती!
दिल को तेरे क़रीब आना था।

एक तूफ़ान आ गया; वरना
ये सफ़ीना भी डूब जाना था।

लौट आए दर-ऐ-बहिश्त से हम;
वां तो सजदे में सर झुकाना था।

खो गया तेज़-रौ ज़माने में;
प्यार का फ़लसफ़ा पुराना था।

ये जो इक ढेर राख का है नदीम-
कल तलक अपना आशियाना था।