Friday, February 27, 2009

कोई भी पर्दा

कोई भी पर्दा, कोई राज़-ओ-राज़दार नहीं;
हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।

हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।

तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।

हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।

कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।

9 comments:

  1. कफ़स में एक सी रुत है तमाम उम्र नदीम;
    ख़िज़ां का ख़ौफ़ नहीं; नक़हत-ए-बहार नहीं।

    बहुत ही उम्दा!

    ---
    गुलाबी कोंपलें

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  2. मन को भा गई ये पंक्तियां-
    हमें पता है के ये ज़ख़्म भरेंगे कैसे;
    हमें किसी भी मसीहा का इन्तज़ार नहीं।

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  3. kise kam kahun kise jyada....har sher ek se badhkar ek..bas padhte gaye aur apne aap munh se waah niklta gaya.....

    Bahut bahut sundar lajawaab gazal.WAAH !!!

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  4. बहुत सुंदर लिखा है...

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  5. कोई भी पर्दा, कोई राज़-ओ-राज़दार नहीं;
    हमारे घर में कोई छत नहीं, दिवार नहीं।
    धन्यवाद इस सुंदर गजल के लिये

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  6. हमें तो ख़ुद ही बनाने हैं अपने स्वर्ग-नरक;
    हमें तुम्हारे ख़ुदाओं पे ऐतबार नहीं।

    तेरा निज़ाम है- कर दे कलम ज़ुबान-ए-सुख़न,
    मगर ज़हन पे तो तेरा भी अख़्तियार नहीं।

    bahut khoob...ye donno jaise aaj ke halat dikhate hai

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  7. "तुम्हारे ख़ुदाओं पे . . ."
    "ज़हन पे तो तेरा . . ."
    "मसीहा का इन्तज़ार . . ."
    "ख़िज़ां का ख़ौफ़ . . . "

    एक बागी की ग़ज़ल है अमर जी ये तो !
    क्या तंजोमिजाज़ , क्या तेवर !
    शानदार !!

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  8. वाह, दिल को छू गई.

    इस चिट्ठे का नाम तो रेंडम रेम्ब्लिंग नहीं बल्कि सिस्टेमेटिक थॉट्स होना चाहिये!!

    सस्नेह -- शास्त्री

    -- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

    महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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