ऊब गया है बैठे ठाले;
चल थोड़ा सा नीर बहा ले।
शर्ट पहन चे गुएवरा की;
उसका सपना राम हवाले.
जब भी सुख से मन उकताए,
गीत सर्वहारा के गा ले।
कमरे में ऐ सी के ऊपर,
लेनिन की तस्वीर सजा ले।
परिवर्तन होगा, तब होगा;
इस सिस्टम में जगह बना ले।
चल थोड़ा सा नीर बहा ले।
शर्ट पहन चे गुएवरा की;
उसका सपना राम हवाले.
जब भी सुख से मन उकताए,
गीत सर्वहारा के गा ले।
कमरे में ऐ सी के ऊपर,
लेनिन की तस्वीर सजा ले।
परिवर्तन होगा, तब होगा;
इस सिस्टम में जगह बना ले।
क्या करारा व्यंग है ! अभी तक मन दंग है !!
ReplyDeleteसच ही तो है.
मुझ पे भी लागू होता है यह तो :(
चलिए कुछ करती हूँ .
आप ऐसे ही झंकझोरते रहिये.
आभार !!
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P.S.:
पर सोच रही हूँ, होली पे तो ज़रा रहमत दिखाई होती :)
ठेठ अभी आईना दिखाना था क्या? सच्ची, बच्चे की जान लोगे आप तो :(
आज के समय पर बहुत अच्छा लिखा.
ReplyDeleteधन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
परिवर्तन होगा, तब होगा;
ReplyDeleteइस सिस्टम में जगह बना ले।
बहुत बढ़िया भाई जी ! मज़ा आगया !
Have you changed the second sher.
ReplyDelete"उसका सपना राम हवाले"
bahut sunder ban pada hai.
परिवर्तन होगा, तब होगा;
ReplyDeleteइस सिस्टम में जगह बना ले।
waah !
bilkul theek kahaa....
aaj ke waqt ki sahi tarjumaani...
---MUFLIS---
गा ले गीत झोंपड़ी वाले----
ReplyDeleteइसके बाद कहने को आपने शेष नहीं छोड़ा कुछ भी
यह सच है कि अगर आपके ब्लॉग पर तमाम फर्जी व्यस्तताओं के चलते नहीं आ पाता तो कुछ मिस करता हूं। आपकी संवेदना अनमोल मोती हैं। बस, इसे नजर न लगे। ऊंचे दर्जे की पोएट्री है। बस ऐसे ही लिखते रहें। शुक्रिया।
ReplyDeleteनयी सोच और नया ढंग...दोनों बेहतरीन...वाह.
ReplyDeleteनीरज
कविता में जो कुछ आप ने कहा है यह केरल में लेनिन के अनुयाईयों के बीच जम कर दिखता है!!
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
कॉफी के प्यालों में क्रान्ति का तूफान खड़ा करने वालों पर करारा व्यंग्य है आपकी कविता, लेकिन साथ ही यह उस बेचैनी को भी बयां कर रही है जो आजकल हर वह व्यक्ति महसूस कर रहा है जिसे मार्क्सवाद पर भरोसा है, लेकिन संशोधनवादियों की करतूतों से क्षुब्ध है, फिर भी सही विकल्प नहीं तलाश कर पा रहा है।
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