Saturday, August 22, 2009

ज़िंदगी भी


ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
हर घड़ी कुछ नया-नया सा है 

दिल ठहरने की सोचता भी नहीं
पाँव ही कुछ थका-थका सा है

मुन्तज़िर है किसी के दामन का
एक आंसू रुका-रुका सा है

जब से बादाकशी से तौबा की
अपना साक़ी ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है

कुछ सयानों की देख कर फितरत 
एक बच्चा डरा-डरा सा है 


Monday, August 10, 2009

प्यार की

 
प्यार की; दोस्ती की बात करें 
आइये ज़िंदगी की बात करें

आँधियों में जो टिमटिमाती है
आज उस रौशनी की बात करें

बारिशों में नहा के घर लौटें
तरबतर सी ख़ुशी की बात करें

दर्द  को  ख़ूब  परेशान  करें
खिलखिला कर हँसी की बात करें

ये फ़रिश्ते कहाँ से समझेंगे
इनसे क्या आदमी की बात करें