ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
हर घड़ी कुछ नया-नया सा है
दिल ठहरने की सोचता भी नहीं
पाँव ही कुछ थका-थका सा है
मुन्तज़िर है किसी के दामन का
एक आंसू रुका-रुका सा है
जब से बादाकशी से तौबा की
अपना साक़ी ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है
कुछ सयानों की देख कर फितरत
एक बच्चा डरा-डरा सा है
waah lekin kuch chotee haen
ReplyDeleteवाह ! सुंदर अशआरों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ............कमाल की रचना
ReplyDeleteSundar gazal.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
सयानों से हमारा विनम्र निवेदन है कि बच्चे को न डराएं,
ReplyDeleteचाहे इसके लिए अपनी फितरत ही क्यों न बदलनी पड़े,
वैसे गज़ल अच्छी बन पड़ी है,
मैं होता तो लिखता, 'हर घड़ी कुछ न कुछ नया सा है'
मुन्तजिर है किसी के दामन का
ReplyDeleteएक आंसू रुका रुका सा है
वाह...वा...
बहुत खूब अमर भाई...लाजवाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई....
नीरज
वाह क्या बात है बहुत खूबसूरत गजल कही आपने
ReplyDeleteआख़री के दो शेर ख़ास पसंद आये
वीनस केसरी
बहुत सुन्दर बातें समेट लायें हैं ये अशआर ! कम शब्दों में बड़ी बात कहने में आप तो माहिर हैं ही. इस ग़ज़ल का structure भी मुझे पसंद आया.
ReplyDeleteदिल ठहरने की सोचता ही नहीं, पाँव ही कुछ . . . वाह !
मुन्तज़िर है किसी के . . . बहुत ही नाज़ुक !
कुछ सयानों की देख .... ये मेरे मन के बिलकुल करीब !
आभार आपका! लिखते रहे डाक्टर साहब ! आपके " जीवन टूटी अलमारी है" जैसे किसी शेर का फ़िर से इंतज़ार है.
पढ़ तो पहले ही ली थी ये ग़ज़ल, आपसे बात भी हो गयी थी सो आज फ़ुर्सत निकाल के फिर से आ गयी :)
लाजवाब!!!बहेतरीन!!!
ReplyDeleteरचना पसंद आई डॉक्टर साहेब, ऐसे ही लिखते रहिये.
ReplyDeleteएक बच्चा डरा डरा सा है । व्यापक आयाम हैं इन पंक्तियों में । बधाई -शरद कोकास दुर्ग छ.ग.
ReplyDeletekuchh sayaano ki dekh kr fitrat
ReplyDeleteek bachchaa draa-draa-sa hai
mere paas iss sher ka koi jawaab nahi . . .
umdaa , meaari , lajwaab .
---MUFLIS---