Saturday, August 22, 2009

ज़िंदगी भी


ज़िंदगी भी अजब तमाशा है
हर घड़ी कुछ नया-नया सा है 

दिल ठहरने की सोचता भी नहीं
पाँव ही कुछ थका-थका सा है

मुन्तज़िर है किसी के दामन का
एक आंसू रुका-रुका सा है

जब से बादाकशी से तौबा की
अपना साक़ी ख़फ़ा-ख़फ़ा सा है

कुछ सयानों की देख कर फितरत 
एक बच्चा डरा-डरा सा है 


12 comments:

  1. waah lekin kuch chotee haen

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  2. वाह ! सुंदर अशआरों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल...

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना ............कमाल की रचना

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  4. सयानों से हमारा विनम्र निवेदन है कि बच्चे को न डराएं,

    चाहे इसके लिए अपनी फितरत ही क्यों न बदलनी पड़े,

    वैसे गज़ल अच्छी बन पड़ी है,

    मैं होता तो लिखता, 'हर घड़ी कुछ न कुछ नया सा है'

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  5. मुन्तजिर है किसी के दामन का
    एक आंसू रुका रुका सा है
    वाह...वा...
    बहुत खूब अमर भाई...लाजवाब ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई....
    नीरज

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  6. वाह क्या बात है बहुत खूबसूरत गजल कही आपने
    आख़री के दो शेर ख़ास पसंद आये

    वीनस केसरी

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  7. बहुत सुन्दर बातें समेट लायें हैं ये अशआर ! कम शब्दों में बड़ी बात कहने में आप तो माहिर हैं ही. इस ग़ज़ल का structure भी मुझे पसंद आया.
    दिल ठहरने की सोचता ही नहीं, पाँव ही कुछ . . . वाह !
    मुन्तज़िर है किसी के . . . बहुत ही नाज़ुक !
    कुछ सयानों की देख .... ये मेरे मन के बिलकुल करीब !
    आभार आपका! लिखते रहे डाक्टर साहब ! आपके " जीवन टूटी अलमारी है" जैसे किसी शेर का फ़िर से इंतज़ार है.
    पढ़ तो पहले ही ली थी ये ग़ज़ल, आपसे बात भी हो गयी थी सो आज फ़ुर्सत निकाल के फिर से आ गयी :)

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  8. रचना पसंद आई डॉक्टर साहेब, ऐसे ही लिखते रहिये.

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  9. एक बच्चा डरा डरा सा है । व्यापक आयाम हैं इन पंक्तियों में । बधाई -शरद कोकास दुर्ग छ.ग.

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  10. kuchh sayaano ki dekh kr fitrat
    ek bachchaa draa-draa-sa hai

    mere paas iss sher ka koi jawaab nahi . . .
    umdaa , meaari , lajwaab .

    ---MUFLIS---

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