Wednesday, October 1, 2008
ख़ूब मचलने की
ख़ूब मचलने की कोशिश कर;
और उबलने की कोशिश कर।
व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
इसे बदलने की कोशिश कर।
कोई नहीं रुकेगा प्यारे;
तू ही चलने की कोशिश कर।
इंतज़ार मत कर सूरज का;
ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
गिरने पर शर्मिन्दा मत हो;
सिर्फ़ सँभलने की कोशिश कर।
इन काँटों से डरना कैसा!
इन्हें मसलने की कोशिश कर।
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कभी मचलने की कोशिश कर;
ReplyDeleteख़ूब उबलने की कोशिश कर।
regards
great lines
इंतज़ार मत कर सूरज का;
ReplyDeleteख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
"bemisal, ek se badh kr ek sher"
regards
कभी मचलने की कोशिश कर;
ReplyDeleteख़ूब उबलने की कोशिश कर।
regards
great lines
बहुत खूब.....
ReplyDeleteइंतज़ार मत कर सूरज का;
ReplyDeleteख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
बहुत सुंदर ...अच्छा लगा ...बधाई स्वीकारें
गुड
ReplyDeleteWah..Wah
ReplyDeleteachha hai...
क्या बात हे बहुत खुब सुरत कविता
ReplyDeleteधन्यवाद
ऐसा ही कुछ मेरे अंदर उठता है पर लिख नही पाता आपने दिल की कही !!
ReplyDeleteआपके विचार को नमन ।अगर आज्ञा दे तो ये कविता अपने ब्लाग के मुख्य पृष्ट मे डालने की इच्छा है !!
अमर जी,
ReplyDeleteसभी पंक्तियाँ एक से बढ़ कर एक हैं, किसकी तारीफ करुँ, किसे छोडू . पर निम्न लाइन मेरे विचारों से बहुत मेल खाती है ............
व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
इसे बदलने की कोशिश कर।
इसी पर मई भी लिख चुका हूँ कुछ इस तरह....
श्रद्धा
(२५)
भाषण देने से होगा क्या
जो कर के न दिखलाया तो
नहीं, अब नहीं सहन होगा
जो फिर से ललचाया तो
आ कर्म - क्षेत्र में , हो लथ-पथ
पाओ पहले अनुभव,तुम्हे शपथ
श्रद्धा से मतवाले दौड़ पड़ेंगे
ज्ञान ज़रा सा भी छलकाया तो
चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com
वाह भाई जान ! मज़ा आगया
ReplyDeleteवही आपका चिरपरिचित अंदाज़, कम शब्द और बहुत गहरा अर्थ !
क्या उम्दा बात कही है !
ReplyDeleteक्या उम्दा बात कही है !
ReplyDeleteव्याख्याएं मत कर दुनिया की;
ReplyDeleteइसे बदलने की कोशिश कर।
इस के बाद कहने को कुछ शेष नहीं.
आप सभी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteक्या खूब कहा है-
ReplyDeleteइंतज़ार मत कर सूरज का;
ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
बधाई।