Wednesday, October 1, 2008

ख़ूब मचलने की


ख़ूब मचलने की कोशिश कर;
और उबलने की कोशिश कर।

व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
इसे बदलने की कोशिश कर।

कोई नहीं रुकेगा प्यारे;
तू ही चलने की कोशिश कर।

इंतज़ार मत कर सूरज का;
ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।

गिरने पर शर्मिन्दा मत हो;
सिर्फ़ सँभलने की कोशिश कर।

इन काँटों से डरना कैसा!
इन्हें मसलने की कोशिश कर।

16 comments:

  1. कभी मचलने की कोशिश कर;
    ख़ूब उबलने की कोशिश कर।
    regards
    great lines

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  2. इंतज़ार मत कर सूरज का;
    ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।
    "bemisal, ek se badh kr ek sher"

    regards

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  3. कभी मचलने की कोशिश कर;
    ख़ूब उबलने की कोशिश कर।
    regards
    great lines

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  4. इंतज़ार मत कर सूरज का;
    ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।


    बहुत सुंदर ...अच्छा लगा ...बधाई स्वीकारें

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  5. क्या बात हे बहुत खुब सुरत कविता
    धन्यवाद

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  6. ऐसा ही कुछ मेरे अंदर उठता है पर लिख नही पाता आपने दिल की कही !!

    आपके विचार को नमन ।अगर आज्ञा दे तो ये कविता अपने ब्लाग के मुख्य पृष्ट मे डालने की इच्छा है !!

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  7. अमर जी,
    सभी पंक्तियाँ एक से बढ़ कर एक हैं, किसकी तारीफ करुँ, किसे छोडू . पर निम्न लाइन मेरे विचारों से बहुत मेल खाती है ............
    व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
    इसे बदलने की कोशिश कर।

    इसी पर मई भी लिख चुका हूँ कुछ इस तरह....

    श्रद्धा
    (२५)
    भाषण देने से होगा क्या
    जो कर के न दिखलाया तो
    नहीं, अब नहीं सहन होगा
    जो फिर से ललचाया तो
    आ कर्म - क्षेत्र में , हो लथ-पथ
    पाओ पहले अनुभव,तुम्हे शपथ
    श्रद्धा से मतवाले दौड़ पड़ेंगे
    ज्ञान ज़रा सा भी छलकाया तो

    चन्द्र मोहन गुप्त
    www.cmgupta.blogspot.com

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  8. वाह भाई जान ! मज़ा आगया
    वही आपका चिरपरिचित अंदाज़, कम शब्द और बहुत गहरा अर्थ !

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  9. क्या उम्दा बात कही है !

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  10. क्या उम्दा बात कही है !

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  11. व्याख्याएं मत कर दुनिया की;
    इसे बदलने की कोशिश कर।

    इस के बाद कहने को कुछ शेष नहीं.

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  12. आप सभी का हार्दिक आभार।

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  13. क्‍या खूब कहा है-
    इंतज़ार मत कर सूरज का;
    ख़ुद ही जलने की कोशिश कर।

    बधाई।

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