Wednesday, October 8, 2008

राम जी से

राम जी से लौ लगानी चाहिए;
फिर कोई बस्ती जलानी चाहिए।

उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
मीडिया को तो कहानी चाहिए।

तू अधर की प्यास चुम्बन से बुझा;
मेरे खेतों को तो पानी चाहिए।

काफिला भटका है रेगिस्तान में;
उनको दरिया की रवानी चाहिए।

लंपटों के दूत हैं सारे कहार,
अब तो डोली ख़ुद उठानी चाहिए।

12 comments:

  1. उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
    मीडिया को तो कहानी चाहिए।
    " very well said, good creation"

    regards

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  2. गजब।
    उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
    मीडिया को तो कहानी चाहिए।
    लेकिन कई मामलों में मीडिया की वजह से ही इंसाफ भी मिला है।

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  3. राम जी से लॊ......
    बहुत खुब

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  4. क्या तेवर हैं ! बहुत खूब ।

    राजनेताओं को अब तो आपकी
    रोज नई गजलें पढानी चाहिए।

    गुम गयी अंगूठी फिर दुष्यंत की
    अब कोई दूजी निशानी चाहिए।

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  5. वह अमर भाई !
    इस सादगी पै कौन न मर जाए ऐ खुदा
    लड़ते हैं मगर हाथ में शमशीर भी नहीं !

    मज़ा आ गया !

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  6. अच्छा कहा है!

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  7. बहुत जबरदस्त कहा ! शुभकामनाएं !

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  8. भई वाह इस बार आपकी रचना ने मोह लिया
    साधुवाद

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  9. अमरजी
    बहुत गहरी बात कही आपने

    अपनी डोली खुद उठानी चाहिये,

    सादर

    राकेश

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  10. राम जी से लौ लगानी चाहिए;
    और फिर बस्ती जलानी चाहिए।

    उसकी हमदर्दी के झांसे में न आ;
    मीडिया को तो कहानी चाहिए।
    ज़िंदगी को बेबाकी से बयां करती हुई कविता

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