Tuesday, August 5, 2008

बचपन

भोर सकारे जैसा बचपन;
ये उजियारे जैसा बचपन।

प्यासी आंखें, सूखा चेहरा,
झील किनारे जैसा बचपन।

मत्था टेके; रोटी मांगे;
ये गुरुद्वारे जैसा बचपन

काँटे पहने भटक रहा है,
ये गुब्बारे जैसा बचपन।

कचरा बीन रहा सड़कों पर
चन्दा-तारे जैसा बचपन।

5 comments:

  1. बचपन को ले कर भावुक कर देने वाले शेर लिखे हैं आपने, बधाई स्वीकारें..


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    www.rajeevnhpc.blogspot.com
    www.kuhukakona.blogspot.com

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  2. भोर सकारे जैसा बचपन
    ये उजियारे जैसा बचपन.
    बधाई.

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  3. काँटे पहने भटक रहा है,
    ये गुब्बारे जैसा बचपन।

    कचरा बीन रहा सड़कों पर
    चन्दा-तारे जैसा बचपन।
    बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

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  4. कचरा बीन रहा सड़कों पर
    चन्दा-तारे जैसा बचपन।

    क्या बात है...बहुत बढ़िया..।।

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