दुखों से दोस्ताना हो गया है
तुम्हें देखे ज़माना हो गया है
खिलौनों के लिये रोता नहीं है
मेरा बेटा सयाना हो गया है
भरी महफ़िल में सच कहने लगा है
इसे रोको- दिवाना हो गया है
मुखौटा इक नया ला दो कहीं से
मेरा चेहरा पुराना हो गया है
कभी संकेत में कुछ कह दिया था
उसी का अब फ़साना हो गया है
वाह ! बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteअतिसुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल. बेहतरीन
ReplyDeleteखिलौनों के लिये रोता नहीं है
ReplyDeleteमेरा बेटा सयाना हो गया है
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह गजल.बेटे को बाप की मजबुरी समझ आ गई होगी.
धन्यवाद
"कभी संकेत में कुछ कह दिया था". यही तो समस्या की जड़ है. बहुत सुन्दर रचना. आभार
ReplyDeleteबहुत खूब भाई जी, शुभकामनायें !
ReplyDeletekhilauno ke liye rotaa nahi hai
ReplyDeletemera beta siyaana ho gayaa hai
waah....
bahut hu khoobsurat aur pukhtaa
khayaal se ru-b-ru karvaya aapne
ghazal bahut achhee kahi hai
---MUFLIS---
डाक्टर साहब,
ReplyDeleteकाफी देर से सोच रही हूँ कि क्या बेहतर था : उदासी का बहाना हो गया है या सभी से दोस्ताना हो गया है . . . और अब मुझे सभी से दोस्ताना ... वाला अच्छा लगने लगा है ये टिप्पणी लिखते समय... ऐसा महसूस हो रहा है कि वह space fill करने के लिए सभी से दोस्ताना करना लाज़मी हो गया पर फ़िर भी कसर रह गयी. क्या कहते हैं आप?
उसी एहसास का शेर ये भी है. . . उसी का अब . . . बहुत खूब!
बच्चा सयाना . . , रोको दीवाना . . . इस तरह के शेर कहने में आपको महारत है, कितने कम अल्फाज़ में क्या कह जाते हैं आप!! वल्लाह!
मुखौटा ला दो . . . ये फ़िर से आपने introspection करने के लिए मजबूर किया :( ये काम भी आपकी साईट पे करना पड़ता है . . . क्या मजबूरी है डाक्टर :)
---
अरे हाँ, विशु को The daily puppy दिखाना पड़ता है, फ़िर वह आपकी ग़ज़ल पढने देती है :) :)
नहीं कह पाये हम अशाआर ऐसे
ReplyDeleteगज़ल लिखते ज़माना हो गया है