Wednesday, January 6, 2010

रास्ता ही

रास्ता ही भूल जाओ एक दिन

आओ मेरे घर भी आओ एक दिन

 

बासी रोटी से ज़रा आगे बढ़ो

उसको टॉफ़ी भी खिलाओ एक दिन

 

क्या मिलेगा ऐसे गुमसुम बैठ कर,

साथ मेरे गुनगुनाओ एक दिन

 

बर्फ़ सम्बन्धों की पिघलेगी ज़रूर

धूप जैसे मुस्कराओ एक दिन

 

घर के सन्नाटे में गुम हो जाओगे

दौड़ती सड़कों पे आओ एक दिन

                          

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया गजल है।बधाई।

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  2. aapke she'ro me mujhe dushyantji ka andaaz mahsoos hua..haalanki unka tevar bhinna he aour aapki gazal saadagi liye hue he.
    "baasi roti se jaraa aage bado..." mujhe thik isake saamne baar me lagaaye gaye puppy ke photos ne kheench liya."barf sambandho..."aour antim "ghar ke sannate me ..." in dono ne dushyantji ki yaad dilaai..par aapka andaaz e banyaa kuchh aour he../

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  3. बर्फ संबंधों की पिघलेगी जरूर....वाह...लाजवाब शेर और कमाल की ग़ज़ल...बधाई
    नीरज

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  4. बहुत सुन्दर!
    बर्फ़ संबंधों की पिघलेगी जरूर
    धुप जैसा मुस्कराओ के एक दिन
    उम्दा|
    दाद कुबूर करें|

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