Monday, April 30, 2012

दर्द आँखों में नहीं 

दर्द आँखों में नहीं दिल में दबाए रखना
इस ख़ज़ाने को ज़माने से छुपाए रखना

हमने बोये हैं अंधेरों में सदा धूप के बीज
हमको आता है उमीदों को जगाए रखना

आज के ख़त ये कबूतर ही तो पहुंचाएंगे कल
इन परिंदों को धमाकों से बचाए रखना 

सारे रिश्तों की हक़ीक़त न परखने लगना
कुछ भरम जीने की ख़ातिर भी बचाए रखना

उसके आने का भरोसा तो नहीं फिर भी नदीम
इक दिया आस का देहरी पे जलाए रखना 


7 comments:

  1. :) I am so happy to see this long awaited post :) Jai Ho!!

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  2. bahut hi badiya

    kamal ki rachna aap ke is khubsurat blog ko mai follow kr reha hu

    http://blondmedia.blogspot.in/

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  3. वाह कमाल का लिखा है आपने बहुत खूब...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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  4. बहुत खूब
    उम्मीदों को जगाये रखना ही होगा

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  5. अमरदा, सारे शेर बला के खूबसूरत!

    पर इस शेर के कहन का क्या कहना:
    आज के ख़त ये कबूतर ही.... बेशकीमती ख़याल, नाज़ुक से पैराहन में लिपटा हुआ. अपने शाब्दिक और निहित दोनों अर्थों में बुलंद शेर!

    ---

    हमने बोये हैं अंधेरों में सदा धूप के बीज....बधाई!

    सादर शार्दुला

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