राजा का आसन डोला;
कहीं किसी ने सच बोला!
इस वासंती मौसम में,
किसने ये पतझर घोला?
दानिशवर ख़ामोश हुए;
जब मजनूं ने मुंह खोला।
जम कर लड़ा लुटेरों से
जिसका ख़ाली था झोला।
सारा जंगल सूखा है;
तू इक चिंगारी तो ला।
कहीं किसी ने सच बोला!
इस वासंती मौसम में,
किसने ये पतझर घोला?
दानिशवर ख़ामोश हुए;
जब मजनूं ने मुंह खोला।
जम कर लड़ा लुटेरों से
जिसका ख़ाली था झोला।
सारा जंगल सूखा है;
तू इक चिंगारी तो ला।
bahut sahi bahut khub
ReplyDeleteबहुत हे सुंदर कविता है ये...बहुत खूब....
ReplyDeleteएक दम यथार्थ कविता है। चंद छंदों में ही समाज का यथार्थ रख दिया है आपने।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखी आप ने कविता...सारा जंगल सूखा है;
ReplyDeleteतू इक चिंगारी तो ला।
सच मे एक चिंगारी चाहिये.
धन्यवाद
एक चिंगारी की ही तो ज़रूरत है. बहुत ही सुंदर रचना. नव वर्ष आप और आपके परिवार के लिए मंगलमय हो.
ReplyDeleteनये साल का लेकर आ
ReplyDeleteगया पहचानो मुझे देखो
इक झोला है, मैं बोला है।
mast hai...gaagar mein saagar bharne jaisa tha...kam shabdo mein badi baat
ReplyDeleteनये साल की सुभकामनायें :)
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteसादर
bahut badiyaa badhaai naya saal mubarak
ReplyDeleteइस वासंती बचपन में,
ReplyDeleteकिसने ये पतझर घोला?
...Lajwab hai...badhai.
चिंगारी की मानिंद है
ReplyDeleteयह रचना.
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बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन