दिल ने यूं तो बहाने बनाए बहुत;
फिर भी तुम बारहा याद आए बहुत।
दर्द का भी एहतराम पूरा किया;
खिलखिलाए बहुत, मुस्कराए बहुत।
खण्डहरों में कभी कोई ठहरा नहीं;
पर इन्हें देखने लोग आए बहुत।
हम तो बदनाम मयक़श थे, चलते रहे;
वाइज़ों के क़दम डगमगाए बहुत।
धूप से यूं न डर; घर से बाहर निकल,
राह में हैं दरख़्तों के साए बहुत।
Wednesday, December 17, 2008
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आपकी कविताएं मेरे ब्लाग पर टूटी हुई आती हैं , पहले मैं उन्हे कापी पेस्ट करके किसी जगह पढ लेती थी , अब आपने लाक करके वह आप्शन भी बंद कर दिया है । कृपया यह कविता मेरे ईमेल पर भेज दें।
ReplyDeleteहर शेर मोती है!
ReplyDeleteएक ज्ञान ज्योति है !
========
किसकी वाह,वाह! लिखें किसे छोडें
हमने सोचा बहुत, डगमगाये बहुत !
सादर ।।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...
ReplyDelete---------------
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
bahut khoob
ReplyDeleteisi tarh nirantar likhte rahiye.
www.merakamra.blogspot.com
अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
ReplyDeleteधन्यवाद