Wednesday, December 17, 2008

दिल ने यूं तो

दिल ने यूं तो बहाने बनाए बहुत;
फिर भी तुम बारहा याद आए बहुत।

दर्द का भी एहतराम पूरा किया;
खिलखिलाए बहुत, मुस्कराए बहुत।

खण्डहरों में कभी कोई ठहरा नहीं;
पर इन्हें देखने लोग आए बहुत।

हम तो बदनाम मयक़श थे, चलते रहे;
वाइज़ों के क़दम डगमगाए बहुत।

धूप से यूं न डर; घर से बाहर निकल,
राह में हैं दरख़्तों के साए बहुत।

6 comments:

  1. आपकी कविताएं मेरे ब्‍लाग पर टूटी हुई आती हैं , पहले मैं उन्‍हे कापी पेस्‍ट करके किसी जगह पढ लेती थी , अब आपने लाक करके वह आप्‍शन भी बंद कर दिया है । कृपया यह कविता मेरे ईमेल पर भेज दें।

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  2. हर शेर मोती है!
    एक ज्ञान ज्योति है !
    ========
    किसकी वाह,वाह! लिखें किसे छोडें
    हमने सोचा बहुत, डगमगाये बहुत !

    सादर ।।

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...


    ---------------
    चाँद, बादल और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com/

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  4. bahut khoob
    isi tarh nirantar likhte rahiye.
    www.merakamra.blogspot.com

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  5. अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें

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  6. बहुत सुंदर कविता लिखी आप ने .
    धन्यवाद

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