Thursday, January 22, 2009

बाग़बां

बाग़बां बन के सय्याद आने लगे;
बुलबुलों को मुहाजिर बताने लगे।

भाईचारा! मुहब्बत! अमन! दोस्ती!
भेड़ियों के ये पैग़ाम आने लगे।


आपसे तो तक़ल्लुफ़ का रिश्ता न था;
आप भी दुनियादारी निभाने लगे!

दर्द वो क्या जो गुमसुम सा बैठा रहे!
दर्द तो वो है जो गुनगुनाने लगे।

एक लमहा था; आया,गुज़र भी गया;
पर उसे भूलने में ज़माने लगे।

11 comments:

  1. आपसे तो तक़ल्लुफ़ का रिश्ता न था;
    आप भी दुनियादारी निभाने लगे!


    -बहुत उम्दा!!

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  2. दर्द वो क्या जो गुमसुम सा बैठा रहे!
    दर्द तो वो है जो गुनगुनाने लगे।

    SubhanAllah!!
    Poori ghazal lajawaab!! Kahan se dhoondh laate hain aap yeh nayaab moti Dr. Amar jyoti :) ?

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  3. बेहतरीन गज़ल ! आभार !

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  4. Many thanx for guiding me on the Translations,You wd have guassed by now that i'm new to the field and have started without prepration but i promise not to publish unless i'm sure about the content.
    Many Regards

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  5. आपसे तो तकल्लुफ का रिश्ता न था
    आप भी दुनिया दारी निभाने लगे

    वाह !
    बहोत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है
    बधाई स्वीकार करें
    ---मुफलिस---

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  6. बेहतरीन ख्याल हैं इस रचना में.. एकदम मौलिक.. वाह वाह..

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  7. आपके ब्लॉग पर आकर ग़ज़ल की ख़ूबसूरती के दर्शन हए हैं , शेर शेरियत और तग़ज़्ज़ुल ... सब कुछ है यहाँ.
    बधाई.


    द्विजेन्द्र द्विज

    www.dwijendradwij.blogspot.com

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  8. दर्द वो क्या जो गुमसुम सा बैठा रहे!
    दर्द तो वो है जो गुनगुनाने लगे।

    Waah....kya bat hai....!!!

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  9. दस पंक्तियों में (सही कहें तो पांच में) आप ने कितना कुछ समेट लिया है!!

    सस्नेह -- शास्त्री

    -- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.

    महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  10. आपसे तो तक़ल्लुफ़ का रिश्ता न था;
    आप भी दुनियादारी निभाने लगे!

    जी इसीलिये टिप्पणी नहीं की

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  11. आपसे तो तक़ल्लुफ़ का रिश्ता न था;
    आप भी दुनियादारी निभाने लगे!

    जी इसीलिये टिप्पणी नहीं की

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