हमने पूछा ज़िंदगी की रहगुज़ारों का पता;
आपने हमको बताया चाँद-तारों का पता।
मुद्दतों पहले गिरा था आँधियों में इक शजर,
खोजती है आज तक बुलबुल बहारों का पता।
जिनके हाथों का हुनर ताज-ओ-पिरामिड में ढला,
क्या किसी को याद है उनके मज़ारों का पता?
धूप के छोटे से टुकड़े की ज़रूरत है उसे;
पूछता फिरता है सूरज अन्धकारों का पता।
नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
हमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।
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धूप के छोटे से टुकडे की है जरूरत उसे---- बहु बडिया भाव हैन बधाई
ReplyDeleteबहोत खूब नादिम भाई बहोत ही बढ़िया लिखा है अपने
ReplyDeleteढेरो बधाई कुबूल करें.
अर्श
नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
ReplyDeleteहमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।
बहुत सुंदर, बहुत ही सुंदर भाव.
धन्यवाद
वाह! वाह ! बहुत अच्छी लगी रचना ।
ReplyDelete"जिनके हाथों का हुनर ताज-ओ-पिरामिड में ढला,
क्या किसी को याद है उनके मज़ारों का पता?"
"नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
हमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।"
सादर।।
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteवाह साहब. बहुत उम्दा ग़ज़ल.
ReplyDeletedr shahab behad khoob
ReplyDeletenice post
behad khoob dr sahab
ReplyDeletenice post
बहुत सुंदर लिखा है....बधाई।
ReplyDeleteप्रभावशाली.
ReplyDelete===============
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
Sundar Rachna. abhar.
ReplyDelete"kb talak hm oas ki boondoN meiN yooN dhalte raheiN ,
ReplyDeletekoi to aa kar btaae
aabsharoN ka ptaa.."
Huzoor aapki khoobsurat ghazal parh kr bahot hi mohtaasir hua hooN
mubarakbaad qubool farmaaeiN.
---MUFLIS---
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर बहुत खूबसूरत है...वाह...
ReplyDeleteनीरज
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteमेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं
-----नयी प्रविष्टि
आपके ब्लॉग का अपना SMS चैनल बनायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeletebahut hi sundar....
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