Saturday, January 10, 2009

हमने पूछा

हमने पूछा ज़िंदगी की रहगुज़ारों का पता;
आपने हमको बताया चाँद-तारों का पता।

मुद्दतों पहले गिरा था आँधियों में इक शजर,
खोजती है आज तक बुलबुल बहारों का पता।

जिनके हाथों का हुनर ताज-ओ-पिरामिड में ढला,
क्या किसी को याद है उनके मज़ारों का पता?

धूप के छोटे से टुकड़े की ज़रूरत है उसे;
पूछता फिरता है सूरज अन्धकारों का पता।

नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
हमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।


16 comments:

  1. धूप के छोटे से टुकडे की है जरूरत उसे---- बहु बडिया भाव हैन बधाई

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  2. बहोत खूब नादिम भाई बहोत ही बढ़िया लिखा है अपने

    ढेरो बधाई कुबूल करें.
    अर्श

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  3. नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
    हमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।
    बहुत सुंदर, बहुत ही सुंदर भाव.
    धन्यवाद

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  4. वाह! वाह ! बहुत अच्छी लगी रचना ।
    "जिनके हाथों का हुनर ताज-ओ-पिरामिड में ढला,
    क्या किसी को याद है उनके मज़ारों का पता?"
    "नाख़ुदाओं के भरोसे डूबना तय था नदीम;
    हमने तूफ़ानों में पाया है किनारों का पता।"
    सादर।।

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  5. वाह साहब. बहुत उम्दा ग़ज़ल.

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  6. बहुत सुंदर लिखा है....बधाई।

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  7. प्रभावशाली.
    ===============
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  8. Sundar Rachna. abhar.

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  9. "kb talak hm oas ki boondoN meiN yooN dhalte raheiN ,
    koi to aa kar btaae
    aabsharoN ka ptaa.."

    Huzoor aapki khoobsurat ghazal parh kr bahot hi mohtaasir hua hooN
    mubarakbaad qubool farmaaeiN.
    ---MUFLIS---

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  10. बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर बहुत खूबसूरत है...वाह...
    नीरज

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  11. मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ
    मेरे तकनीकि ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं

    -----नयी प्रविष्टि
    आपके ब्लॉग का अपना SMS चैनल बनायें
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  12. आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

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