Saturday, April 4, 2009

मौत ज़िन्दगी पर

मौत ज़िन्दगी पर भारी है;
पर क्या करिये लाचारी है।

छीन-झपट कर,लूट- कपट कर,
बचे रहे तो हुशियारी है।

भरे पेट वालों में यारी,
भूखों में मारामारी है।

परिवर्तन भी प्रायोजित है;
और बगा़वत सरकारी है।

सुख को कुतर गए हैं चूहे;
जीवन टूटी अलमारी है।

4 comments:

  1. Wah Wah wah!!
    arre itni sabr thodi ki hindi transliteration ka wait karoon:) dr. sahib, too good! I am so impressed. Jeevan tutti almaari, prayojit parivartan, bhookhe paet. . . wow only you could say it like it is !!

    Will write in hindi later :)

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  2. हर शेर उम्दा! बहतरीन ग़ज़ल!

    छीन-झपट कर,और कपट कर,
    बचे रहो तो हुशियारी है।
    --अफ़सोस पर कटु सत्य !

    भरे पेट वालों में यारी,
    भूखों में मारामारी है।
    --बहुत सूक्ष्म बात !

    परिवर्तन भी प्रायोजित है;
    और बगा़वत सरकारी है।
    --एक दम सामयिक, आपकी साफगोई का जवाब नहीं !

    सुख को कुतर गए हैं चूहे;
    जीवन टूटी अलमारी है।
    --ये आपका हस्ताक्षर शेर हुआ इस ग़ज़ल का! वाह क्या आदायगी !

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  3. Gajal ko samaj ka aaina banakar kar ullekhniya baat kahi hai aapne.Badhai.

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