सच्चाई का दम भरता है;
कोई दीवाना लगता है।
कन्धों पर है बोझ आज का,
आँखों में कल का सपना है।
घनी अमावस की स्याही को,
जुगनू शर्मिंदा करता है।
दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
ये दुनिया कैसी दुनिया है?
आसमान को तकने वाले!
आसमान में क्या रक्खा है?
Saturday, April 4, 2009
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बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
ReplyDeleteaap bahut hi sadhaa aur sunder laekhan padney kae liyae uplabdh karaatey ahen
ReplyDeletethanks
बहुत अच्छी रचना. पहली दो पंक्तियों ने ही हमें फ्लैट कर दिया. आभार.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. अच्छी, प्रेरक बातें ! आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteदीवाना ही सच्चा हो सकता है।
"आसमान को तकने वाले!
ReplyDeleteआसमान में क्या रक्खा है?"
--मेरा सोचना है आसमान में धरा का विश्वास है अमर जी!
***
"सच्चाई का दम भरता है;
कोई दीवाना लगता है।"
--बहुत सुन्दर! जाने क्यों एक गीत याद आ रहा है,"दीवानों की ये बातें दीवाने जानते हैं :)"
***
पता है, अमर जी, आपने नीचे वाली ग़ज़ल same day post कर के गड़बड़ की, शायद पुरानी post समझ के उसे लोग पढ़ नहीं रहे. बहुत ही सुन्दर है वह ग़ज़ल !
Bahut khub..
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है-
ReplyDeleteसच्चाई का दम भरता है
कोई दीवाना लगता है
बधाई। एक अच्छी रचना के लिए।
"kandhoN par hai bojh aaj ka ,
ReplyDeleteaankhoN meiN kal ka apna hai"
bahut hi prabhaav-shali rachna
baar-baar parhne ko jee karta hai
badhaaee . . . .
---MUFLIS---
दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
ReplyDeleteये दुनिया कैसी दुनिया है?
लाजवाब शेर है अमर जी...वाह...बेहतरीन...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई
नीरज