Saturday, April 4, 2009

सच्चाई का दम

सच्चाई का दम भरता है;
कोई दीवाना लगता है।

कन्धों पर है बोझ आज का,
आँखों में कल का सपना है।

घनी अमावस की स्याही को,
जुगनू शर्मिंदा करता है।

दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
ये दुनिया कैसी दुनिया है?

आसमान को तकने वाले!
आसमान में क्या रक्खा है?

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

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  2. aap bahut hi sadhaa aur sunder laekhan padney kae liyae uplabdh karaatey ahen
    thanks

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  3. बहुत अच्छी रचना. पहली दो पंक्तियों ने ही हमें फ्लैट कर दिया. आभार.

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  4. सुन्दर प्रस्तुति. अच्छी, प्रेरक बातें ! आभार!

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  5. बहुत सुंदर!
    दीवाना ही सच्चा हो सकता है।

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  6. "आसमान को तकने वाले!
    आसमान में क्या रक्खा है?"
    --मेरा सोचना है आसमान में धरा का विश्वास है अमर जी!
    ***
    "सच्चाई का दम भरता है;
    कोई दीवाना लगता है।"
    --बहुत सुन्दर! जाने क्यों एक गीत याद आ रहा है,"दीवानों की ये बातें दीवाने जानते हैं :)"
    ***
    पता है, अमर जी, आपने नीचे वाली ग़ज़ल same day post कर के गड़बड़ की, शायद पुरानी post समझ के उसे लोग पढ़ नहीं रहे. बहुत ही सुन्दर है वह ग़ज़ल !

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  7. क्‍या खूब लिखा है-
    सच्‍चाई का दम भरता है
    कोई दीवाना लगता है

    बधाई। एक अच्‍छी रचना के लिए।

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  8. "kandhoN par hai bojh aaj ka ,
    aankhoN meiN kal ka apna hai"

    bahut hi prabhaav-shali rachna
    baar-baar parhne ko jee karta hai
    badhaaee . . . .
    ---MUFLIS---

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  9. दुःख सागर सा, सुख मोती सा,
    ये दुनिया कैसी दुनिया है?
    लाजवाब शेर है अमर जी...वाह...बेहतरीन...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई
    नीरज

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